राम और शिव के बाद अब संवरेगी 88 हजार ऋषियों की तपोस्थली नैमिष धाम

उत्तर प्रदेश:-
हिंदुस्तान सदियों से आस्था का देश रहा है। आज भी भारत के घरों में पहले भगवान को भोग लगता है फिर कार्य दूजा होता है। बीजेपी के सत्ता में आने के बाद तीर्थ स्थलों पर न केवल परिवर्तन किया गया बल्कि इस तरह से सुंदर और आकर्षक बनाया गया कि लोग सहजता ही जुड़ते चले है। आस्था में अहम भूमिका निभाने वाली बीजेपी सरकार के वोट का एक बड़ा प्रतिशत श्रृद्धा भक्ति से भी जुड़ा हुआ है।
इसी दिशा में अब एक कदम और आगे बढ़ने की ओर है सीतापुर का नैमिष धाम। काशी, अयोध्या, मथुरा के बाद अब नैमिष धाम का रास्ता भी साफ़ हो गया है। चौरासी कोस का नैमिषारण्य धार्मिक तीर्थ स्थल योगी सरकार के प्रयासों के कारण अब नव निर्माण के पथ पर आगंतुक हो गया है।
सदन में पारित हुआ "नैमिषारण्य धाम तीर्थ 2022"
अपनी हड्डियों का दान करने वाले महर्षि दधीचि और 88000 ऋषियों की पवित्र भूमि नैमिषारण्य अब विकास की ओर एक कदम बढ़ बढ़ गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने "उत्तर प्रदेश श्री नैमिषारण्य धाम तीर्थ विकास परिषद विधेयक 2022" विधानमंडल में पारित करा लिया है। इसका विस्तार प्रदेश के सीतापुर हरदोई जिले की सीमा के भीतर नैमिषारण्य के समस्त क्षेत्र का होगा। जिसके अंतर्गत सीतापुर के 36 गांव शामिल है जिसका कुल क्षेत्रफल 8511.284 हेक्टेयर है। इसमें 11 स्थान है। जिसमें से 7 स्थान सीतापुर के अधीन आते हैं जबकि चार स्थान जिला हरदोई के अंतर्गत आते हैं। इसका संपूर्ण परिपथ चौरासी कोस (209 मील) का है। जिसे नैमिषारण्य,नीमसार और नैमिष के नाम से जाना जाता है।
नैमिष के बिना अधूरी मानी जाती चार धाम की यात्रा,
महर्षि दधीचि के नाम से प्रचलित नैमिष धाम का इतिहास है कि लोक कल्याण के लिए देवराज इंद्र को दधीचि ने अपनी अस्थियां दान कर दी थी।
नैमिषारण्य वह पावन तपोस्थली है जहां पर पहली बार सत्यनारायण की कथा कही गई थी। कई सारे महापुराण इसी धरती पर लिखें गए हैं। नैमिष का वर्णन पुराणों में भी मिलता है। इसीलिए नैमिष की यात्रा के बिना चार धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है। नैमिष 84 कोस में फैला यूपी की राजधानी लखनऊ के पड़ोसी शहर सीतापुर में स्थित है।
लव–कुश और बाल्मीकि का पहला मिलन नैमिष में हुआ था:
महाभारत युद्ध के बाद सभी साधु कलियुग के आरंभ पर चिंतित थे तो साधु ब्रह्मा जी से किसी ऐसे स्थान के बारे में बताने के लिए कहा जो कलियुग के प्रभाव से मुक्त हो जहां की धरती पवित्र हो। फिर बह्माजी ने एक पवित्र चक्र निकाला और उसे पृथ्वी की तरफ घुमाते हुए कहा,जहां भी ये चक्र रुकेगा, वो स्थान कलियुग के प्रभाव से मुक्त रहेगा। फिर ब्रह्मा जी का चक्र नैमिष वन में आकर रुका इसीलिए साधु-संतों ने इसी स्थान को अपनी तपोभूमि बना लिया। इसीलिए इसके दर्शन के बिना चार धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है। प्राचीन काल में करीब 88 हजार ऋषि -मुनियों ने इस स्थान पर तप किया था। रामायण में भी ये उल्लेख है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ पूरा किया था। महर्षि वाल्मीकि और श्री राम के पुत्र लव-कुश का मिलन इसी स्थान पर हुआ था। इसके अलावा महाभारत काल में युधिष्ठिर और अर्जुन भी इसी जगह आए थे।
रिपोर्ट–श्वेता शुक्ला