राजस्थानी संगठन का भौवणी उत्सव समारोह

राजस्थानी युवा समिति का भोलावणी उत्सव संपन्न
कल दिनांक 9अक्टूबर की शाम राजस्थानी युवा समिति द्वारा आयोजित भोलावणी उत्सव होटल चंद्रा इम्परियल के सभागार में संपन्न हुआ। उत्सव क्या था मानो उत्साह और उमंग का एक उमडता हुआ सैलाब, अपनी मायड भाषा राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिए कटिबद्ध लोगों का हुज़ूम। जैसे सुग्रीव के निमंत्रण पर कहाँ कहाँ से वानर और रीछ एकत्रित हुए थे राम की सेना में सम्मिलित होने के लिए, वैसे ही राज्य के कोने कोने से सिर्फ एक आवाज़ पर युवा और लोग एकत्रित हुए। 200 की क्षमता वाला हॉल छोटा पड़ गया, इतना छोटा कि श्री निर्मल गहलोत को अपने संबोधन में कहना पड़ा कि ऐसे कार्यक्रम सभागारों के बजाय खुले स्थानों में होने चाहिए जिससे राह चलता व्यक्ति भी शामिल हो सके, जिसके प्रत्युत्तर में समिति की ओर से धन्यवाद देते हुए हिमांशु ने घोषणा की कि अगला कार्यक्रम सामने पोलो मैदान में आयोजित होगा। उत्सव कई अर्थों में अद्भुत था, एक तो कोई अतिथि या अध्यक्ष नहीं थे, सभी संभागी मेजबान। स्टेज ज़रूर था, और उस पर वरिष्ठ साहित्यकार ज़हूर खां मेहर, आई दान सिंह भाटी जैसी राजस्थानी भाषा के रचेता उपस्थित थे, तो उनके साथ उत्कर्ष संस्था के श्री निर्मल गहलोत, संविधान विशेषज्ञ श्री दिनेश गहलोत, स्प्रिंग बोर्ड, जयपुर के श्री राजवीर सिंह चलकोई, राजस्थानी भाषा के युवा प्रेमी जनों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। मंच संचालन का जिम्मा बीकानेर से आये श्री छैलू ने संभाल रखा था। और क्या तो बोले लोग, सभी राजस्थानी में बोल रहे थे, मानों राजस्थान की संस्कृति भाषा का रूप ले कर एक अमृत प्रपात की तरह बह रही थी और श्रोता अवाक उस प्रहाव में डूब उतरा रहे थे। यही सवाल सबके मन में था, जो भाषा इतनी समृद्ध, इतनी मीठी और इतनी संप्रेषणशील है, और देश के सबसे बड़े राज्य की भाषा है, उसे देश तो क्या अपना खुद का राज्य राजस्थान भी नहीं मान रहा है? आखिर क्यों?
इन प्रश्नों के बैल को सबसे पहले सींगों से पकड़ा राजस्थानी युवा समिति के उपाध्यक्ष प्रवीण मकवाना ने। उन्होंने अपने भाव प्रवण संबोधन में यह स्पस्ट भोलावणी दी कि यह काम केवल समिति का या कुछ मुट्ठी भर युवाओं का नहीं है, यह एक जन आंदोलन है, जो एक नवीन ज्वार की तरह उमडा है और जब तक
उमडा रहेगा जब तक वह अपने उद्देश्य के चाँद तक नहीं पहुँच जाता। दिनेश गहलोत का संबोधन राजस्थानी भाषा के संघर्ष का एक संवैधानिक इतिहास था, पूरी तरह से तारीखों और आंकड़ों के साथ उन्होंने स्पस्ट किया कि युवा समिति ने जो दो लक्ष्य निर्धारित किये हैं, पहले राज्य में शासकीय भाषा का दर्जा दिलाना और फिर केंद्र की आँठवीं सूचि में मान्यता दिलवाना, संविधान के अनुछेद 345 और 347 कर अनुसार तर्क संगत भी है।
वरिष्ठ पीढी की जहाँ एक ओर यह पीड़ा झलक रही थी कि उनके प्रयास अभी तक सफल नहीं रहे, यह डर भी था कि बाद में राजस्थानी का कोई नामलेवा भी रहेगा या नहीं? लेकिन उन्होंने खुल कर कहा कि उनका वो भय तो दूर हो गया, राजस्थानी का परचम अब ज्यादा सशक्त हाथों में सुरक्षित है। राजवीर सिंह चलकोई का जब नाम पुकारा गया तो हॉल देर तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूँजता रहा। राजवीर का संबोधन, बल्कि पूरे कार्यक्रम का वीडियो अगर बना हो, तो उसे यूट्यूब पर डाला जाना चाहिए। लोगों को पता तो चले कि क्या है राजस्थानी भाषा। राजवीर ने सबसे पहले अपनी वरिष्ठ पीढी को सम्मान दिया कि जो कुछ भी सीखा है, उन्हीं का आशीर्वाद है, और आगे भी उन्हीं का मार्ग दर्शन रहेगा। राजवीर ने अपने अनूठे अंदाज़ में जब विदेशों में बस चुके राजस्थानी लोगों की बातें बताई तो जैसे बाहुबली का जय जय कारा संगीत बज उठा। श्री निर्मल गहलोत ने युवा समिति को सफलता सुनिश्चित करने के लिए रोकड़ बाण का सूत्र दिया कि लोगों को मान्यता मिलने से होने वाले फ़ायदों की जानकारी भी होनी चाहिए। उनका राजस्थानी के प्रति समर्पण उन के इस कथन में छुपा था कि वे मन, कर्म, वचन, और तन, मन, धन से इस अभियान से जुड़ाव रखेंगे। श्री आई दान जी भाटी, जिसके लिए वे विख्यात हैं, शब्द और ध्वनि से संप्रेषण, उसी शैली में उन्होंने युवा समिति का उत्साह वर्धन किया। श्री ज़हूर खान ने अपने भावपूर्ण उद्बोधन में इतिहास के उन पृष्ठों को टटोला जब श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने एक बार खुद उन से एक सभा में यह राज खोला था कि राजस्थानी को मान्यता मिलने से हिंदी को खतरा हो सकता है। उन्होंने कहा ऐसी सभी भ्रांतियों का निवारण होना चाहिए। राजस्थानी से किसी भी अन्य भाषा को कोई खतरा नहीं है, केवल प्रदेश की जनता का लाभ बढ़ जायेगा। जितने अद्भुत संबोधन उतना ही अद्भुत छैलू जी का संचालन। मोतियों को माला में पिरोता हुआ। बीच बीच में सीताराम लालस और शक्तिदान कविया जैसे पुरोधाओं का स्मरण, मोहन सिंह रतनु का कविता पाठ और संघर्ष को लक्ष्य प्राप्ति तक जारी रखने की शपथ के साथ समापन। जैसे राम सेतु का निर्माण प्रारंभ हुआ, विजय अब दूर नहीं।