राजस्थानी भासा री मांग प्रदेस रै भविस नै उजळौ बनावण री मांग है - प्रोफेसर अर्जुनदेव चारण

जोधपुर :-
रम्मत संस्थान द्वारा आयोजित एक दिवसीय ' राजस्थानी विचार गोष्ठी ' में राजस्थानी भाषा-साहित्य के ख्यातनाम कवि-आलोचक डॉ.अर्जुन देव चारण ने कहा है कि पिछले नब्बे साल से चल रहा राजस्थानी भाषा की मान्यता का आंदोलन आने वाली पीढ़ी को रोजी रोटी के संकट से उबारने की मुहीम है। राजस्थानी को मान्यता मिलने पर ही राजस्थानियों का अस्तित्व बच पाएगा वरना यह नागरिकता पर संकट का कारण बनेगा। हमें सिर्फ मान्यता ही नहीं बल्कि प्रदेश की अधिकारी बनानी होगी। राज में भी अधिकार चाहिए। उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि हमें राजस्थानी को प्रदेश की प्रथम राजभाषा बनानी चाहिए। प्रोफेसर चारण ने कहा कि राजस्थानी की मान्यता के लिए जब वे बात कह रहे हैं तो इसे कोरी भावुकता से समझने की जरूरत नहीं है बल्कि इसे वोट की ताकत बनाकर ' मान्यता नहीं तो वोट नहीं ' को सार्थक बनाना चाहिए । उन्होंने कहा कि राजस्थान में राजस्थानी को पहली राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त करनी चाहिए तब ही रोजीरोटी का मसला हल होगा मगर राजनेताओं में इच्छा शक्ति की कमी होने के कारण राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता नहीं मिली। चारण ने अनेक ऐतिहासिक साक्ष्य और घटनाओं का जिक्र करते हुए बताया कि राजस्थानी के साथ कई बार अन्याय हुआ, लेकिन अब हमें भाषा की लड़ाई पूरी ऊर्जा के साथ लड़नी होगी। उन्होंने कहा कि भाषा, भोजन और भेष ही व्यक्ति की पहचान का आधार होता है। इसे नहीं बचा पाए तो फिर अस्तित्व कैसे बचा रहेगा। उन्होंने कहा कि यह आंदोलन सिर्फ लेखकों, शिक्षकों और विद्यार्थियों का नहीं है। इसमें सभी को जुटना होगा तब ही भविष्य को बचाया जा सकता है।