राहुल के हिंदु और हिंदुत्व के बयान से कांग्रेस को फायदा कम नुकसान ज्यादा

जयपुर-
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी के जयपुर में हिन्दू और हिंदुत्व को दो अलग-अलग खांचों में बांटकर उसकी सियासी व्याख्या से एक बड़ा और प्रायः रहने वाला मुखर सेक्युलर तबका मानो बल्लियों उछल रहा है. मानो उत्तरप्रदेश चुनाव में धमाकेदार वापसी करने के लिए पार्टी को संजीवनी मिल गयी हो. सदियों से दमित और आक्रांत हिन्दू जन-मानस के अभ्युदय के दौर में भी, राहुल गाँधी के सलाहकार और उनके बेतुकी बातों तक का समर्थन करने वाले हरकारे, अगर ऐसा सोचते हैं कि हिन्दुओं को गरियाकर और उन्हें उनकी धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं के लिए नीचा दिखाकर आज भी वोट बटोरे जा सकतें हैं, तो ऐसी सोच वालों को सलाम. इन्हें अजायबघर में रखा जाना चाहिए और इनकी मानसिक बनावट का मनोवैज्ञानिक अध्ययन होना चाहिए ताकि भविष्य की पीढ़ियां भी जान सकें कि आत्म-मुग्ध, हवा-हवाई और ज़मीन सच्चाइयों से जी चुराने वाले लोगों की मानसिक बनावट कैसी होती है.
राहुल गाँधी सदाशयी और ऊर्जा से लबरेज नौजवान हैं, उनकी मंशा साफ़ है. लेकिन जिस वाम-वैचारिकी ने उनको घेरकर अट्टहासी प्रतिष्ठान तान दिए हैं, वह निश्चय ही राहुल गाँधी के निर्मल और स्वप्नदर्शी अंतःकरण को वैचारिक बेतरतीबी के भंवर जाल में उलझा रही है. महात्मा गांधी के दौर में जिस कांग्रेस को मुस्लिम लीगी और वामपंथी हिन्दू बनिया पार्टी कहते थे, आज उस पार्टी को हिन्दुओं का एक विशाल तबका अपने अस्तित्व-धर्म-और संस्कृति के लिए एक बड़ा खतरा मानता है. क्या कांग्रेस की धर्म-निरपेक्षता का कुल जमा निष्कर्ष इतना ही होना चाहिए ?
गांधीजी के जो थोड़े बहुत अनुयायी कांग्रेस में या देश में रह गए हैं, एक बार उनके मन की भी सूनी जाये। वे इस बात के साक्षी होंगे कि कांग्रेस हिन्दुओं के मानस से इतनी बुरी तरह क्यों उतरी? जिन लोगों को पार्टी के अतीत की गरिमा का भान और उसके इश्तकबाल की चिंता है, उन्हें खोजना, समझाना और बूझना चाहिए कि इस बेतरतीबी का सबब क्या है? ऐसे लोगों को भी चिन्हित किया जाना चाहिए जिन्होंने पार्टी के इस होनहार और जुझारू नेता को वैचारिक रूप से भ्रमित कर रखा है. केवल भाजपा और संघ को दोष देने से काम नहीं चलेगा। अपने बंद पड़े तहखानों के अंदर झांकने की जरुरत है.
स्कूलों-कॉलेजों से लेकर अखबारों और सिनेमा और टेलीविज़न पर जो अंध-हिन्दू विरोध परोसा गया उसका नतीजा यह हुआ कि देश का बहुसंख्यक समाज कांग्रेस पर भरोसा करने से घबराता है. वामपंथियों और उनके वैचारिक अधिष्ठान को ढोने वालों ने समाज में ऐसे लोगों की एक बड़ी फ़ौज कड़ी कर दी है जो खुद को सेक्युलर या कांग्रेसी या समाजवादी कहने में गर्व का अनुभव करते हैं लेकिन हिन्दू, सनातन और भारतीयता से उन्हें उतना ही गुरेज़ होता है. दरअसल,इस वर्ग को एक बड़ी विकट मनोरोग ने जकड लिया है. अपनी संस्कृति को उसके शास्त्रीय और मूल सन्दर्भों में पढ़े-समझे बिना उसका विरोध करना और आक्रांताओं की मान्यताओं को बिना जाने-समझे उचित ठहरना.
पता नहीं वो लोग कौन हैं जो बार-बार राहुल गाँधी को हिन्दुत्व की उछाल भरी पिच पर खुलकर खेलने के लिए उकसाते हैं, जहाँ भाजपा और संघ को बाज और चीते की गति से खेलने में महारत हासिल है. पता नहीं उन्हें यह कौन समझा रहा है कि हिंदुत्व मतलब गोडसे और हिन्दू मतलब गाँधी। हिंदुत्व का शाब्दिक अर्थ सिर्फ हिन्दुता, हिन्दू होने की भावना या अंग्रेजी में हिन्दूनेस है. राहुल गाँधी या कांग्रेस के और नेता जब भी हिंदुत्व को निशाना बनाते हैं, हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग जो सदियों पुराने जातियों के चोले को उतारकर अपनी हिन्दू पहचान पर गर्व करना सीख रहा है, उसका मर्म बुरी तरह आहत हो जाता है और उसका नतीजा होता है भाजपा को बिना किसी खास परिश्रम के ही फायदा हो जाता है.
मैं कांग्रेस के सिपहसालारों से पूछना चाहता हूँ कि आज हिन्दुओं का जो बड़ा तबका मोदी-योगी के पीछे लामबंद हुआ है, क्या यही वर्ग आज़ादी के आंदोलन और उसके बाद के वर्षों तक अपनी पूरी निष्ठा के साथ कांग्रेस के साथ नहीं खड़ा था? कौन लोग हैं वो जिन्हें हम भक्त कहकर हर रोज़ लांछित करते हैं लेकिन वो अपनी हिन्दू चेतना से डिगने को तैयार नहीं होते। कांग्रेस को यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि हिंदुत्व को या हिन्दुओं को गाली देकर, अपमानित करके उनकी नव चेतना को पैशाचिक साबित करके कांग्रेस केवल वामपंथियों के घृणित एजेंडे को ही आगे बढ़ाएगी, उसका खुद का कोई कल्याण इस नीति से होने वाला नहीं है. अगर पार्टी को वापस अपना खोया वैभव पाना है तो उसे वामपंथ की वैचारिक झूठन को त्याग कर गाँधी के विशुद्ध उदार,सनातनी,भारतीय और सर्व समावेशी आदर्शों की तरफ लौटना होगा, वरना इतिहास के कूड़ेदान में बड़ी-बड़ी सल्तनतों और बड़ी-बड़ी सभ्यताओं को ज़ज़्ब करने, हजम करने और नष्ट करने की कूवत होती है. गाँधी की कांग्रेस पतन के उस मुकाम तक पहुँचने से पहले ही जी जाए, हरी भरी हो जाये, प्राणमय हो जाये, शक्ति संपन्न हो जाये, ऐसी कामना और यथेष्ट प्रयत्न इस देश का हर जिम्मेदार हिन्दू-मुसलमान और ईसाई को करनी चाहिए।