सुधीर बिश्नोई ने मीडिया मंथन हिंदी के बाद अब मीडिया मंथन इंग्लिश भी लांच किया

किसी पत्रकार के लिए जीवन जीना सहज नहीं होता.हर रोज परिवेश में अनेक घटनाएं घटती है.लगभग रोज कहीं न कहीं ऐसी घटनाक्रम घटते है कि पत्रकार खुद को द्रवित किए बिना नहीं रह पाते.समाज और देश में पत्रकारों की एक भारी खेप है.पिछले कुछ समय से पत्रकारों की मानो बाढ़ सी आ गई है.यह एक ऐसा काम है जिसमें आपको हर रोज जूझना पड़ता है हर घटना को खंगालना पड़ता है बहुत सारी मेहनत के बाद कभी कभी तो "खोदा पहाड़ निकली चुहिया की तरह भी हालात बनते है".
जोधपुर के एक सामान्य किसान परिवार का लड़का सुधीर बिश्नोई टेलीविजन देखता हुआ एक सपना भी देखता है कि मुझे भी पत्रकार बनना है.वे खबरें और घटनाएं जो ये बड़े पत्रकार अपने चैनलों और अखबारों में नहीं दिखाते वे सारी घटनाएं मैं दिखाऊंगा.इस दुनिया को पता चलना चाहिए कि मंटो बिल्कुल ठीक कहते थे कि 'भूखे पेट का मजहब सिर्फ रोटी होता है ' पत्रकारिता एक पेशा है जहां तनख्वाह मिलना और गुजारा करना शुरुआत के दिनों में लगभग मुश्किल होता है लेकिन धीरे धीरे आदमी का गुजारा इससे चलना शुरू हो जाता है.शुरुआत के दिनों में सुधीर ने जोधपुर की ही जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में पढ़ाई की. पढ़ाई तो समय के साथ पूरी हो गई लेकिन दुनिया अब भी वही थी.रोज लड़ती और झगड़ती हुई.
पढ़ाई के बाद सुधीर बिश्नोई ने यहां - वहां कुछ चैनलों में नौकरी भी की लेकिन मन नहीं रमा. ए.सी. के कमरों में बैठकर किसानों के हालात बताते हुए मन भला लगता भी कैसे ? सुधीर मन ही मन सोचने लगे क्या इस सबके लिए पत्रकारिता शुरू की थी.बहुत सोचने और विचारने के बाद सुधीर बिश्नोई ने स्टूडियो वाली पत्रकारिता छोड़ने का फैसला किया और ग्राउंड रिपोर्ट्स के लिए कूद पड़े. तमाम मुश्किलात झेलते हुए खुद का एक न्यूज चैनल शुरू किया और नाम रखा "मीडिया मंथन"
मीडिया मंथन अभी पत्रकारिता के दौर में नया नया था.शुरुआत में निराशा हाथ लगी और कभी कभी तो लगता जैसे पत्रकारिता छोड़ खेती शुरू कर दूं लेकिन वक्त और तख्त हमेशा एक के नहीं रहते.सुधीर किसान वर्ग से आते थे और उन्होंने बचपन के फव्वारा की लाइने बिछाने से लेकर कटाई और बुवाई तक में अपना हाथ आजमा रखा था इसीलिए उनके पास सबसे बड़ा हथियार उनकी खेती ही थी.उन्होंने ये तय किया कि अब से वे खेती से जुड़ी और किसानों की रोजमर्रा की समस्यायें लोगों को पहुंचाएंगे.यह पत्रकारिता जगत में पहली दफे की घटना थी कि लोग किसान के बेटे को पत्रकार बनते देख खुश हो रहे थे और उसे अपना आशीष भेज रहे थे.
मीडिया मंथन ने देखते ही देखते बहुत कम समय में एक विश्वसनीय न्यूज चैनल के रूप में खुद को स्थापित कर लिया.कुछ साथियों की मेहनत और सुधीर की लगन रंग लाई.मांग इतनी बढ़ने लगी कि सुधीर को अपने चैनल का इंग्लिश वर्जन "मीडिया मंथन इंग्लिश" भी लॉन्च करना पड़ा. वैश्विक महामारी कोरोना के चलते हुए जहां समग्र विश्व है भयंकर बेरोजगारी की और बढ़ रहा था उन विपरीत परिस्थितियों में सुधीर विश्नोई ने अपने प्लेटफार्म मिडिया मंथन के जरिए देश के सैकड़ों युवाओं को रोजगार देने का काम किया। सुधीर हमेशा यह बात सोचते है कि उन्हें "नौकरी करने वाला नहीं नौकरी देने वाला बनना है" और उसके लिए वह दिन रात मेहनत करने के लिए तैयार रहता है
आज सुधीर एक सफल पत्रकार है.उनके न्यूज चैनल मीडिया मंथन और मीडिया मंथन इंग्लिश दुनिया भर में धूम मचा रहे है.विचार धाराओं के इस युग में निरपेक्ष रहकर काम करने वाले ऐसे पत्रकार दुर्लभ है.